हमारे यहाँ यह मान्यता है कि मृत्यु के बाद लोगों की आलोचना नहीं की जानी चाहिए। जो चला गया उसको मुक्ति मिलनी चाहिए। नए लोगों को ढूंढना चाहिए। यह अच्छी बात है कि जाने वाला अकेले जाता है , नहीं तो शायद कुछ लोग जिनका मन कभी नहीं भरता उसके पीछे पीछे परलोक तक पहुँच जाते। यह शायद मृत्यु की उपलब्धि है जो चारों ओर से घिरे व्यक्ति को एकदम से कहीं दूर ले जाती है। लेकिन बात यहाँ जीवन की है।
मृत्यु के बाद क्या होता है यह बस कल्पना है। बात जीवन की और जीवित लोगों की होनी चाहिए। मृत्यु के बाद का जीवन कल्पना या सत्य हो न हो , यहाँ का जीवन तो सत्य है। अगर स्वप्न भी है तो यही जीवन है। अगर मृत्यु का सम्मान है तो क्या जीवन का है ? क्या जीवित लोगों को यहाँ सम्मान मिलता है ?फिल्म प्यासा में जब तक कवि विजय जीवित था उसको कुछ नहीं मिला। जब वह वापस आया तो उसने देखा कि उसको जो जीवन से नहीं मिला वही मृत्यु से मिल गया। फिर उसको जीवित पाकर वही लोग जो उसके चले जाने से दुखी थे उसके जीवन के पीछे पड़ गए। यही हमारे यहाँ होता है। सम्बन्ध किसी भी तरह का हो , कारण कोई भी हो – व्यक्ति को आघात लगते रहेंगे। समाज , विपक्षी , शुभचिंतक इत्यादि शब्दों से और आचरण से यातनाएं देते रहेंगे। क्योंकि जीवित व्यक्ति का कोई मूल्य नहीं है। मरने के बाद के प्रेत का भय ज्यादा है। जीवित व्यक्ति बस किसी न किसी रूप में किसी और की आकाँक्षा की पूर्ति का स्रोत भर है बस।जीवित रहते हुए सम्बन्ध सुधारने की चेष्टा नहीं होती है क्योंकि उसमे अहम् को चोट लगती है। किसी के जाने के बाद लम्बे चौड़े सन्देश देकर ऐसा दिखाया जाता है जैसे मन में कभी मैल रहा ही न हो।
जीवन की सार्थकता इसी में है की जीवन का सम्मान हो। अगर मतभेद है भी तो उसके साथ रहा जाए। दो मनुष्य एक जैसे नहीं हो सकते। शरीर के अंदर ही सत्त्व , रज और तमस में मतभेद रहते है , यहाँ तो अलग अलग व्यक्तिओं की बात है। विष का असर तभी है जब तक कोई जीवित है , जाने के बाद विषधर और विष दोनों शक्तिहीन हैं। यदि जीवित व्यक्ति के अस्तित्व और संवेदनाओं का ध्यान रखा जाए तो मृत व्यक्ति को कृत्रिम श्रद्धांजलि देने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। नहीं तो जाने वाला और पीछे रह जाने वाले दोनों “प्यासे” रहेंगे |