Categories
HINDI

कुतर्क

लेकिन इस तर्क ने दिया क्या ? अगर पाने को कुछ था ही ?कितने बुद्ध आ गए ? वही प्रश्न , वही भय , वही अधूरेपन की छटपटाहट ।तर्क की अपनी सीमाएं हैं । वह व्यक्ति को अद्भुत यात्राएं कराता है और अचानक बीच में ही पटक देता है ।

तर्क में बुद्धि , वाक्चातुर्य और अनुभव का समावेश है । कितने ही ज्ञानियों ने शब्दों के हेर फेर से जिज्ञासुओं को नयी दिशा दी । ऐसा लगा जैसे जो नहीं जानते थे वह सब जान गए । सत्य प्रकट हो गए । भीड़ जुटने लगी । भारी भरकम आध्यात्मिक सन्देश विश्व भर में प्रवाहित होने लगे । क्यों कैसे क्या हुआ इस पर सबकी राय बनने लगी । लेकिन इस तर्क ने दिया क्या ? अगर पाने को कुछ था ही ?कितने बुद्ध आ गए ? वही प्रश्न , वही भय , वही अधूरेपन की छटपटाहट ।

तर्क की अपनी सीमाएं हैं । वह व्यक्ति को अद्भुत यात्राएं कराता है और अचानक बीच में ही पटक देता है । विभिन्न तरह के दर्शन और विचारधाराओं ने मनुष्य का बौद्धिक भोग अच्छे से कराया है । लेकिन कोई विचारधारा या दर्शन कितना भी तर्कसंगत क्यों न हो , मनुष्य को भौतिकता के अलग अलग तलों पर ही घुमाता रहता है , क्योंकि बुद्धि और इन्द्रियानुभूति की अपनी सीमाएं हैं ।लौट के तो घर ही आना है । उसी मन के भीतर । जो भी खेल चला उसी माया के बुलबुले के अंदर चला।अगर सत्य के प्रति श्रद्धा नहीं है तब तर्क में मूर्खता ही है। बिना श्रद्धा का तर्क बस अहम् का विस्तार है।

मूर्खता शुद्धतम भक्ति में भी है । जब “मैं” नहीं रहा तो मन क्या करेगा । भक्त के पास शब्दकोष नहीं , बस समर्पण और श्रद्धा है । न उसको किसी को तर्क से पराजित करना है , न ही भौतिक जगत की कोई भी विजय ,”उसके” सामने उसकी पराजय से श्रेठ हो सकती है। तर्कशास्त्री “परमानंद ” के विषय में समझाएगा और सुनने वाले स्वयं को ब्रह्म समझकर मुग्ध हो जाएंगे। भक्त को नहीं पता “आनंद” क्या है फिर भी वह जिस भी अवस्था में रहेगा वही आनंदस्वरूप होगी । जब मैं ही नहीं रहा तब चोट कहाँ लगेगी , माया ही नहीं तब भय का क्या अस्तित्व ? माया के बुलबुले को शुद्धतम भक्ति संभवतः सरलता से भेद सकती है । जिस बोध ने सिद्धार्थ को बुद्ध बना दिया वह बौद्धिक तर्क से नहीं , संपूर्ण अस्तित्व की एकरूपता को देखने पर ही होगा , तब तक उस एक सत्य को अलग अलग तरह से बताया जाता रहेगा और कुछ पा लेने की इच्छा में लोग शब्द-मायावियों के यहाँ एकत्रित होते रहेंगे ।

%d bloggers like this: