Categories
HINDI Perspectives

सब नश्वर है इसलिए मुस्कुराओ

नश्वरता का बोध होना कोई नकारात्मक बात नहीं है। इसी बोध से बुद्ध जन्म लेते हैं । इसी बोध में मुक्ति है। मुक्ति नहीं भी हो तो भी मार्ग यहीं से मिलता है। स्वयं को अस्तित्व का केंद्र समझ लेना फिर भी मूर्खता है।  भीतर यह बात बैठ जाये कि जो है वो तभी तक है जब तक मैं हूँ। मेरे कष्ट , सुःख , दुःख , धर्म , जाति इत्यादि विभाजन , मान्यताएं , प्रथाएं , विचारधाराएँ  मेरे न होने पर मेरे लिए अर्थहीन हो जाएंगे। जिन्होंने मेरे मन में इतने अर्थ भर दिए वे भी या तो अर्थहीन हो चुके हैं या हो जाएंगे।

अस्थायी से मन उचटने के बाद जीवन रूपांतरित होगा। बंधन स्पष्ट  होंगे। ऊर्जा सृजनात्मक होगी। विवेक संसार द्वारा अनिवार्य माने जानी वाली बातों को नकारना आरम्भ करेगा। छोटे छोटे झगड़े-बहस , अखबारों की बातें , प्रतिस्पर्धा में लगे लोग , सभ्यताओं के टकराव इत्यादि कोई अर्थ नहीं रखेंगे। रखेंगे भी तो एक खेल के खंड के रूप में।

महत्त्व बस एक बात का बचेगा। अपनी चेतना का।  वही सबसे निकट , शाश्वत और शुद्ध प्रतीत होती है। सब बदलता रहा लेकिन यह नहीं बदली।  जो इस चेतना की शुद्धता को अवरुद्ध करेगा , वह छंट कर अलग हो जाएगा। अब जो कर्म  होंगे , इसी के लिए और इसी से होंगे। अब त्याग और भोग का द्वन्द नहीं है। यही यात्रा है , यहीं मुक्ति है। कल हो न हो का प्रश्न नहीं है , पता है कि अगले क्षण भी ऐसा कुछ होगा जो अभी नहीं है।

नश्वरता के बोध से किसी की प्रगति नहीं रुकती है , बस प्रगति का अर्थ स्पष्ट होता है। बोध कभी भी भीड़ को नहीं होता है , व्यक्ति को होता है । सत्य के साथ जीना ही सकारात्मकता है ।

%d bloggers like this: