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नया सत्य

सत्य बस एक ही हो सकता है। वेद कहते हैं की सत्य को जानने के अलग अलग तरीके हो सकते हैं लेकिन फिर भी वह रहेगा एक ही।यह अलग बात है कि वही सत्य समय के साथ दूषित होता रहता है और उसी दूषित सत्य को अलग अलग विचारधारा के लोग अपना अपना परम सत्य मान लेते हैं। भगवद गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन को यही बात समझाते हैं कि जिस सत्य की वह बात करने जा रहे हैं वह पहले भी सुपात्र लोगों को बताया जा चुका है , लेकिन आज की परिस्थिति में इसकी फिर से बात करना अनिवार्य हो गया है। ज्ञान पुराना या नया हो सकता है। सीमित भी हो सकता है। वह तथ्यों , अनुभवों और इन्द्रियों की सीमाओं के अधीन है। ज्ञान कई तरह का हो सकता है , ज्ञानी में अभिमान और पाखण्ड भी हो सकता है ,लेकिन सत्य वही है जो इन्द्रियों की सीमाओं से परे है , जो माया के आवरण से ढका नहीं है , शाश्वत है , शब्दों और मनुष्य की परिभाषाओं के अधीन नहीं है। ज्ञानी कोई भी हो सकता है लेकिन सत्य का दर्शन दुर्लभ है। उसके लिए मन और इन्द्रियों के परे जाना होगा , अहम् को छोड़ना होगा , शून्य को समझना होगा। समझ भी लिया फिर सत्य के साथ जीना और भी कठिन है। क्योंकि सत्य भाषा या शब्दों से परे है इसलिए अलग अलग कालों में उसका दर्शन जिन्होंने भी किया ,उन्होंने उसको अपने अपने तरीके से सामने लाने का प्रयत्न किया, या सत्य में ही जीवन जिया और लोगों ने अपने हिसाब से उसको समझ लिया। महात्मा बुद्ध ने जिस सत्य को जाना और जिया वह भगवद गीता के या उपनिषद् के सत्य से अलग नहीं है। लेकिन उसकी सार्थकता यह है की जिस काल में उनका अवतरण हुआ उस समय के लोगों को उस काल और परिस्थिति के हिसाब से उन्होंने एक सुगम मार्ग दिखाया , सत्य को सरल और सामयिक बना दिया। इसी तरह कबीरदास जी ने जिस सत्य की बात की वह भी उनसे पहले कहे गए या जाने गए सत्य से अलग नहीं था लेकिन उनकी शैली ऐसी थी की परम गूढ़ बातें भी आम जनमानस तक सरलता से पहुँच गयीं। सुनने और जानने वाला आम आदमी इन्द्रियों के वश में होने के कारण अपने अपने हिसाब से अपनी पसंद का मार्गदर्शक चुन लेता है , उसको लगता है उसने कोई नया सत्य समझ लिया है , लेकिन जब अंत में उसको स्वयं अनुभव होते हैं तब वह जान जाता है कि जो भी माया के पार जा सकेगा ,उसको उस एक ही परम सत्य के दर्शन होंगे । इसीलिए सत्य एक ही रहेगा। जो उसको जानेगा , वह अपने भाव और अनुभव के हिसाब से उसको लोगों तक पहुंचाएगा। देश काल परिस्थिति के हिसाब से उसका वर्णन किया जाएगा लेकिन वो रहेगा एक ही। इस बात का झगड़ा व्यर्थ है कि किसका सत्य ज्यादा गहरा है ,नया है और कितना मौलिक है। सत्य है तो मौलिक है , सत्य है तो गहरा है , बाकी सब पाखण्ड है।

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