कपड़ों नहीं ,किताबों की दुकान पर भीड़ हो तो कुछ बदले ,
सुनाने की नहीं ,सुन पाने की समझ हो तो कुछ बदले ,
गर्व की नहीं ,कर्म की वरीयता हो तो कुछ बदले ,
सड़क पर नहीं ,हृदय में धर्म हो तो कुछ बदले ,
पशु पर नहीं ,पशुता पर कटार चले तो कुछ बदले ,
मिटा देने की नहीं, सृजन की सनक हो हो कुछ बदले ,
अकेलेपन को अगर एकांत भर दे , तो कुछ बदले ,
अहं के अंधकार को प्रेम का प्रकाश हरे तो कुछ बदले ,
क्रूरता के कंटक चुभें, और भीतर करुणा के फूल खिलें तो कुछ बदले,
महत्वाकांक्षाओं के चक्रव्यूह से मुक्ति की एक किरण उठे तो कुछ बदले,
सुख दुःख की मरुभूमि में आनंद की वर्षा हो तो कुछ बदले,
लिप्तता का उछलापन नहीं ,असंगत्व का आकाश मिले तो कुछ बदले ,
परिवर्तन के साक्षी का अपरिवर्तनीय से मेल हो जाए , फिर कुछ बदले , या न बदले …
EKAANTANANDA